आवास योजनाएं तो बहुत चली पर गरीब झोपड़पट्टी में रहने
*सुविधा शुल्क न दे पाने से पात्र वंचित अधिकांश अपात्र पाए लाभ*
*बिधूना,औरैया।* जिले में सरकार द्वारा गरीबों के लिए आवास योजनाएं तो बहुत चलाई गई लेकिन योजना के लाभ के लिए ज्यादातर संबंधित जनप्रतिनिधियों व जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा सांठगांठ बनाकर अवैध रूप से घूसखोरी की अपनाई गई प्रक्रिया से सुविधा शुल्क न दे पाने के कारण अधिकांश पात्र गरीब आवास के लाभ से वंचित होने के कारण आज तक झोपड़पट्टी में रहने को मजबूर नजर आ रहे हैं वहीं दूसरी ओर अपनी तीन तिकड़म व प्रभाव के साथ सुविधा शुल्क के बलबूते तमाम अपात्र धन्नासेठ आवास योजना का लाभ पाए नजर आ रहे ऐसे में शासन व प्रशासन की नियत पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। .पिछले लगभग दो दशक से भी अधिक समय पूर्व से सरकार द्वारा झोपड़पट्टी व कच्चे मकानों में जिन्दगी बसर करने वाले गरीबों के लिए विभिन्न नामों से तमाम आवास योजनाएं चलाई जा रही है लेकिन इतने वर्षों बाद भी औरैया जिले के बिधूना ऐरवाकटरा सहार अछल्दा अजीतमल भाग्यनगर औरैया समेत सभी विकास खंडों की ग्राम पंचायतों में जमीनी धरातल पर देखने में आ रहा है कि तमाम पात्र गरीब आज भी झोपड़पट्टी व कच्चे मकानों में जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं वहीं दूसरी ओर पक्के मकानों में रहने वाले अपात्र धन्नासेठ अपनी तीन तिकड़म व प्रभाव के साथ सुविधा शुल्क के बलबूते सरकारी आवास योजना का लाभ उठा चुके हैं। सबसे गौरतलब बात तो यह है कि ग्राम पंचायतों के जनप्रतिनिधियों व संबंधित ग्राम विकास विभाग के कर्मचारियों की सांठगांठ से योजना का लाभ देने के लिए अवैध रूप से अपनाई जाती रही सुविधा शुल्क हड़पने की प्रक्रिया से ही पात्र गरीबों को योजना के लाभ से वंचित होना पड़ा है क्योंकि जब उनके पास भरण पोषण में दिक्कतें हैं तो ऐसे में वह संबंधित जिम्मेदारों के लिए आखिर सुविधा शुल्क का बंदोबस्त कैसे कर सकें। दिलचस्प बात तो यह भी है कि अपात्रों को आवास योजना का लाभ पहुंचाए जाने और गरीबों को लाभ से वंचित किए जाने के मामले में पीड़ितों के साथ जिले के बुद्धिजीवियों द्वारा भी इसके खिलाफ आवाजें उठाई गई और शिकायतों पर जांचें भी की गई लेकिन यह जांच रिपोर्ट अधिकारियों के ठंडे बस्तों में दबकर दम तोड़ गई है और इसी का परिणाम है कि मौजूदा समय में भी जिले की अधिकांश ग्राम पंचायतों में आवास योजना के नाम पर अपात्रों को लाभ पहुंचाए जाने की शिकायतें लगातार अधिकारियों से हो रही हैं लेकिन इसके बावजूद संबंधित प्रधानों व कर्मचारियों की मनमानी पर कोई अंकुश लगता नहीं दिख रहा है और ऐसे में शासन की नियत पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है।