धर्म की रक्षा के लिए राक्षसों का हुआ वध-अंजाना*
*साथ दिवसीय श्रीमद् भागवत पंडाल में उमड़ रहे श्रोता*
*औरैया।* शहर के सुरान रोड स्थित पीतांबरा गार्डन के पास सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन शनिवार को करकरापुर कानपुर देहात निवासी कथावाचक अनूप तिवारी अंजाना ने भक्त प्रह्लाद चरित्र, भरत चरित्र, पृथु चरित्र व हिरणकश्यप बध, नरसिंह अवतार व समुद्र मंथन का वर्णन कर कहा कि धर्म की रक्षा के लिए राक्षसों का वध हुआ था। देवता और दैत्य एक ही संतान के पुत्र थे लेकिन विचार अलग-अलग थे।कथावाचक श्री तिवारी ने व्याख्यान करते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत कथा का केंद्र है आनंद। आनंद की तल्लीनता में पाप का स्पर्श भी नहीं हो पाता। भागवत कथा एक ऐसा अमृत है, कि इसका जितना भी पान किया जाए मन तृप्त नहीं होता है। .उन्होंने कहा कि हिरणकश्यप नामक दैत्य ने घोर तप किया, तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए व कहा कि मांगों जो मांगना है। यह सुनकर हिरनयाक्ष ने अपनी आंखें खोली और ब्रह्माजी को अपने समक्ष खड़ा देखकर कहा-प्रभु मुझे केवल यही वर चाहिए कि मैं न दिन में मरूं, न रात को, न अंदर, न बाहर, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूबकर मरूं, सदैव जीवित रहूं। उन्होंने उसे वरदान दिया। हिरणकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। हिरणकश्यप भागवत विष्णु को शत्रु मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र को मारने के लिए तलवार उठाया था कि खंभा फट गया उस खंभे में से विष्णु भगवान नरसिंह का रूप धारण करके जिसका मुख शेर का व धड़ मनुष्य का था। प्रगट हुए भगवान नरसिंह अत्याचारी दैत्य हिरनयाक्ष को पकड़ कर उदर चीर कर बध किया। इस धार्मिक प्रसंग को आत्मसात करने के लिए श्रोता देर शाम तक भक्ति के सागर में गोते लगाते रहे। इस दौरान परीक्षित नारायन देवी पत्नी अशोक कुमार सविता, आरती देवी, रंजीता, अमोद कुमार, अभिनेंद्र कुमार, हरिओम भदौरिया, रामसेवक, रामजीलाल, रामकुमार, शिवकुमार, विनोद, अखिलेश, मनोज, नीरज, अरविंद, राजीव, प्रदीप, सर्वेश, संजीव, रमोले, सुभाष सहित अन्य श्रोतागण मौजूद रहे।