आओ मनाएं दीवाली, स्वच्छ पर्यावरण वाली : डॉ. सूर्यकान्त रामचरित मानस में भी है पर्यावरण अनुकूल दीवाली मनाने का सन्देश
लखनऊ। संतो की सोच और वाणी हमेशा ही समाज के हित मे ही होती है। वे सामाजिक और दूर द्रष्टा भी होते है। पर्यावरण अनुकूल दीपावली मनाने का सुंदर संदेश आज से 500 साल से अधिक पहले से राम चरित मानस में अंकित मिलता है। यह कहना है जनपद इटावा के मूल निवासी व वर्तमान में किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्य कान्त का। उनके अनुसार संत तुलसीदास ने रामचरित मानस में इसका स्पष्ट जिक्र भी किया है। उन्होंने लिखा भी है कि,- “अवधपुरी प्रभु आवत जानी । भई सकल सोभा कै खानी। बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भई सरजू अति निर्मल नीरा।” अर्थात प्रभु श्री राम के आगमन पर जिस प्रकार त्रिबिध बयार यानि शीतल, मंद, सुगन्धित हो चली थी और सरयू का सारा जल निर्मल हो गया था। हमेशा ऐसी ही दीपावली मनाइए जिससे कि हमारे आस-पास की वायु शुद्ध निर्मल, शीतल, मंद सुगन्धित बनी रहे और वातावरण के साथ हमारी नदियों का जल भी निर्मल और स्वच्छ रहे। टीबी, तम्बाकू और प्रदूषण मुक्त अभियान के संयोजक और नेशनल कोर कमेटी, डाक्टर्स फॉर क्लीन एयर के सदस्य डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि हमारा देश बहुत ही उल्लास और उत्साह के साथ अपने प्रमुख त्योहारों को मनाता है। ऐसे में हमें यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि इससे खुद के साथ दूसरों के स्वास्थ्य पर कोई विपरीत असर न पड़ने पाए । प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल ही इस राष्ट्रीय पर्व को मनाना हम सभी के हित में भी है। चूंकि,पटाखे हर साल देश मे वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी बनते हैं। जिससे सांस के मरीजों की परेशानी को देखते हुए तेज आवाज और प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों की जगह इको फ्रेंडली पटाखे ही जलाएं। पटाखे जलाते समय चश्मा भी जरूर पहनें क्योंकि इससे आपकी आँखे सुरक्षित रहेंगी। दीप पर्व पर खुद के साथ घर के बुजुर्गों और गंभीर बीमारी से ग्रसित लोगों का भी पूरा ख्याल रखें।
डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि पटाखों से निकलने वाला धुआं वातावरण में नमी के चलते बहुत ऊपर तक नहीं जा पाता है, जिससे हमारे इर्द-गिर्द रहकर सांस लेने में परेशानी, खांसी आदि की समस्या पैदा करता है। दमे के रोगियों की शिकायत भी बढ़ जाती है। धुंए के कणों के सांस मार्ग और फेफड़ों में पहुँच जाने पर ब्रानकाइटिस और सीओपीडी की समस्या बढ़ सकती है। यह धुआं सबसे अधिक त्वचा को प्रभावित करता है, जिससे एलर्जी, खुजली, दाने आदि निकल सकते हैं। इसलिए त्योहार के उमंग और उल्लास के साथ पर्यावरण का भी पूरा ख्याल रखें।