Kashmir Pandit1990/ 19 January
तारीख थी 19 जनवरी 1990 जब भारत के ताज कश्मीर कश्मीर के इतिहास में एक काला पन्ना जुड़ा। ये काला अध्याय था, अपने ही घर से कश्मीरी पंडितों को बेदखल किया जाना। कश्मीर एक्सट्रीमिस्ट सड़कों पर नारे लगा रहे थे, और कश्मीरी पंडितो को मजबूर कर रहे थे कश्मीर छोड़ने के लिए।
उस दिन मंज़र कुछ ऐसा था कि 19 जनवरी की सर्द सुबह में इलाके में धार्मिक नारे लगाए जा रहे थे। जो संदेश था कश्मीर में रहने वाले हिंदू पंडितों के लिए। ऐसी धमकियां उन्हें पिछले कुछ महीनों से मिल रही थीं।
ज़ाहिर है इलाके में रह रहे सैकड़ों हिंदू घरों में उस दिन बेचैनी का आलम था। उनके लिए वो रात बड़ी भारी गुजर रही थी, सैकड़ों कश्मीरी पंडितों ने अपने अपने सामान बांधने शुरु कर दिए थे और पुश्तैनी घरों को छोड़कर कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन का फैसला कर लिया था। और उसी रात घाटी से पंडितों का पहला जत्था निकल गया।
Kashmiri Pandit Genocide: इसके बाद मार्च और अप्रैल के दरम्यान हजारों परिवार घाटी छोड़कर देश के दूसरे सूबों में शरण लेने को मजबूर होने लगे। एक संस्था के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 1990 तक घाटी में हिंदू पंडितों के करीब 75,343 परिवार थे। मगर अगले दो सालों में करीब 70,000 से ज्यादा परिवारों ने घाटी को छोड़ दिया। और अब करीब पिछले 30 सालों के दौरान घाटी में बमुश्किल 800 हिंदू परिवार बचे हैं।
Kashmiri Pandits Story:असल में घाटी से हिंदुओं के पलतायन के इस सिलसिले की शुरुआत यूं तो 1989 से ही शुरू हो गई थी। जब कश्मीरी पंडितों के बड़े नेता पंडित टीका लाल टपलू की हत्या कर दी गई। आरोप था कि जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के कट्टरपंथियों पर, लेकिन अभी तक इसका फैसला हो नहीं पाया। फिर धीरे धीरे घाटी में भड़काऊ भाषणों का दौर शुरु हुआ, हिंदुओं को घाटी छोड़ने के लिए धमकाया जाने लगा। दीवारों पर पोस्टर्स लगाए गए कि हिंदुओं कश्मीर छोड़ दो।
पिछले तीन दशकों में कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में बसाने की कई कोशिशें हुईं, मगर नतीजा सिफर रहा। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद हालात और खराब होते गए। हिंदुओं को भी इस बात का अहसास है कि घाटी अब पहले जैसी नहीं रही। हालांकि 5 अगस्त, 2019 को जब भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया तो कश्मीरी पंडित बेहद खुश थे। मगर उनकी वापसी के अरमान अब भी अरमान ही हैं।‰