*कथा का तृतीय दिवस, पति की अवज्ञा करने वाली स्त्री का अमंगल सुनिश्चित है-आचार्य सियाराम शरण दास*


आचार्य ने सती चरित्र के प्रसंग की कथा सुनते हुए कहा कि राजा दक्ष की पुत्री सती का विवाह शंकर भगवान से राजा दक्ष के न चाहते हुये भी हो गया, जिससे राजा दक्ष सती से नाराज रहते थे। एक वार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया तो उन्होने अपने नाते रिश्तेदारो को बुलाया किन्तु सती के यहा बुलावा नही भेजा। इसके वाद भी सती का मन जाने के लिये हुआ तो उन्होंने अपने जाने की लालसा भगवान शंकर से प्रकट की, किन्तु भगवान शंकर ने बगैर निमन्त्रण के न जाने का प्रस्ताव रखा ।किन्तु माता सती बगैर वुलावा के राजा दक्ष के यह चली गयी। जहाँ उनका उपहास उड़ाया गया। सती से अपने पति का अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ तो सती क्रोधित होकर यज्ञ कुंड में अपने आप को भस्म कर लिया। आचार्य ने पंडाल में उपस्थित मातृशक्ति अपील करते हुए कहा कि बगैर पति की अनुमति के घर की चौखट नही लाघिनी चाहिए अन्यथा बेइज्जती का सामना करना पड़ता है। आचार्य ने अभिमन्यु की कथा सुनते हुए कहा कि जिस प्रकार से अभिमन्यु ने गर्भावस्था के दौरान ही चक्रव्यूह के भेदन की कला सीख ली थी। इसलिए माताएं गर्भावस्था के दौरान धर्मिक पुस्तके पढ़े, बड़ो से आदर से बात करे और हमेशा प्रसन्न चित व सस्कारवान रहे।ताकि भावी पीढ़ी स्वस्थ औऱ बलशाली, सस्कार वान हों। इस अवसर पर संयोजक सरिता शुक्ला एवं उत्तम कुमार शुक्ला, संजय शुक्ला, सूर्यकांत शुक्ला, मणिकांत शुक्ला, ज्योत्सना मिश्रा, रोहित मिश्रा, अनामिका शुक्ला, आकांक्षा शुक्ला, राहुल मिश्रा, राजू मिश्रा, अंकुश शर्मा, अनिल अवस्थी, कुलदीप सविता, अनुपम सविता, उज्जवल अवस्थी, अंकुर शर्मा, राधा रमण तिवारी, सुवीर कुमार त्रिपाठी, एवं सभी ग्रामवासी एवं क्षेत्रवासी रहें।