*जलंधर, शंखचूड़ व अंधक के जन्म की सुनाई कथा*
*गोपाल वाटिका में चल रही शिव महापुराण कथा*
*औरैया।* नगर के आर्य नगर काली माता मंदिर रोड स्थित गोपाल वाटिका आश्रम में चल रही नौ दिवसीय शिव महापुराण कथा में बड़ी संख्या में श्रोता पहुंच रहे हैं। छठवें दिन शनिवार को कथा वाचक सुशील शुक्ला दद्दा जी महाराज जौरा वाले ने अपने मुख से कई प्रमुख लीलाओं की कथा सुनाई। कथा वाचक श्री शुक्ला ने प्रमुख रूप से जलंधर शंखचूड़ एवं अंधक के जन्म उत्पत्ति एवं उनके वध की कथा सुनाई। आगे कहा कि भगवान शंकर के तीसरे नेत्र से अग्नि प्रकट हुई। इसी कोपाग्नि से एक बालक ने जन्म लिया। उस समय सागर की लहरों में तूफान जैसी स्थिति थी। .इन्हीं लहरों पर उस बालक को आश्रय मिला। यही बालक बड़ा होकर क्रूर, दंभी और अथाह शक्ति के स्वामी दैत्यराज जलंधर के नाम से विख्यात हुआ। वृंदा के सतीत्व के कारण भगवान शिव का हर प्रहार को जलंधर निष्फल कर देता था। देवताओं ने मिलकर योजना बनाई और भगवान विष्णु जलंधर का वेष धारण करके वृंदा के पास पहुंच गये। वृंदा भगवान विष्णु को अपना पति जलंधर मानकर उनके साथ पत्नी के समान व्यवहार करने लगी। इससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जलंधर का वध किया। भगवान विष्णु वृंदा के पति की रक्षा नहीं कर सके। इस पर सती (वृंदा) ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह धरती पर शालीग्राम यानि शिला के रूप में रहें। इस पर देवी लक्ष्मी ने वृंदा से अपने पति भगवान विष्णु को इस श्राप से मुक्त करने की विनती की। तब देवी वृंदा ने सती होने से पूर्व भगवान विष्णु को अपने समीप रहने की शर्त पर अपने श्राप को संशोधित कर दिया। देवी वृंदा के सती होने के पश्चात उस राख से एक नन्हें पौधे ने जन्म लिया। ब्रह्मा जी ने इसे तुलसी नाम दिया। यही पौधा सती वृंदा का पूजनीय स्वरूप हो गया। भगवान विष्णु ने देवी तुलसी को भी वरदान दिया कि वह सुख -समृद्धि प्रदान करने वाली माता कहलाएंगी और वर्ष में एक बार शालीग्राम और तुलसी का विवाह भी होगा। कथा आयोजन में प्रतिदिन आयोजको द्वारा नाना प्रकार की प्रसादी का वितरण भी किया जा रहा है।